पे बैक टू द सोसाइटी दिबस
साहब का बचपन
साहब बी.एस.सी. की पढाई पूरी करने के वाद खेत के काम में हाथ नही बंटाने लगा । एक पडोसी जमिन्दार साहब के पिता हरिसिँह जी को टोकते थे कि तुम्हारा बडा बेटा कांशीरा हट्टा–कट्टा है उससे खेत के काम क्यों नही करवाते, क्या पढा लिखाकर उसे पटवारी बनाएगा । तब उसके जबाव में साहेब के पिता उस जमिनदारों को धमकाते थे लेकिन वो बाते दिलो दिमाग पर चुभ जाती थी । एक साहब के पिताजी ने साहब को काँलेज में न जाने तथा खेत में जरुरी काम करने के लिए छुट्टी करने को कहा तो साहब ने काम करने की मनाही कर दी । पिताजी भडक उठे और जमींदार सही कहते है कि कांशीराम को पढा—लिखाकर क्या पटवारी बनाएगा । इस वात पर साहेब बोले कि पटबारी केवल उनके लडके ही बनते है । आप उन पागल जमींदारको कह देना मैं पटवारी नही प्रधानमंत्री बनुंगा ।
साहब ने मंगनी तोड दी
५ दिसंबर, १९९३ को एक पत्रकार वार्ता में साहब से पूछा गया कि आपकी शादी कब हुई ? साहेब ने जवाब दिया— मैने शादी नही की है । जब मेरी शादी होने की बात चल रही थी तो मैने फैसला किया कि मेझे सामाजिक और राजनीतिक जीवन में रहना है, तो मुझे शादी नही करनी चाहिए । मेरा कोई अपना परिवार मोहमाया का जंजाल नही है । मेरा परिवार बहुजन समाज होगा ।
बहुजन समाज का निर्माण
साहब कांशीराम बहुजन समाज निर्माण में सब से अधिक चुनौति बहुजन संभ्रान्त से हो रहा था । संभ्रांतो के अलगाव जैसी भयंकर बीमारी तक से निपटने में सक्षम खरे और समर्थ नेतृत्व की ब्यवस्था करने के बाद जड समस्या पर आते है । चमचा युग की समस्या का सफल समाधान करने के लिए मुलतः ३ भागो में विभाजन करना किया । १) चमचा युग की चुनौती से निपटना, २) चमचा युग का अंत करना और ३) उज्जवल युग लाना ।
उपर के समस्या का समाधान करने के लिए तीन कार्रबाई योजना बनाया । एक अल्पावधि, दो दीर्घावधि और तीन स्थायी कहा जा सकता है ।
बहुजन समाज शांत है और उसने अपनी निम्न हैसियत से सम्झौता कर लिया है । यह समाज का एक बडा तबका है । इस बडे तबके को जगाना, उठाना और सक्रिय करना होगा । समाज के इस बडे तबके की, उसे जगाने और उठाने के बाद, इस तरह की सक्रियता को सामाजिक कार्रवाई कहा जा सकता है । समाजिक कार्रवाई जागरुकता पैदा किया ।
साहेब कांशीराम सामाजिक कार्रवाही की तयारी के लिए हमारे समाज के बडे तबके को जागरुक करने के लिए अनेक विचारपूर्ण उपाय का सुत्र प्रस्तुत किया और कर के दिखाया । इस के तहत समान्य उपाय अन्तरगत सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मीक और सांस्कृतिक पहलुओं पर समाजको जागरुक किया । बहुजन समाज यीन सभि पहुलो पर अन्धेरे में थे । उन्हे प्रबुद्ध करने के लिए इन सभी मोर्चो पर जागरुकता अनिवार्य थी । जब तक उनहे जागरुक नही किया जाएगा तब तक उनहे उठाया नही जा सकेगा, और जब तक उन्हें उठाया या सचेत नही किया जाएगा तब तक उन्हे संलिप्त नही किया जा सकेगा । उन्हें संलिक्ष्त करने के लिए ब्यापक जागरुकता की जरुरी है । हुकमरान बनना असान नही था पर असंभव नही थी ।
२) पुना समझौते की निंदा : चमचा युग उस पुने सम्झौते की देन है । चमचा युग पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए, पूना सम्झौता की ५०वीं बर्षगांठ पर ही उसकी निंदा की गई । निंदा के एक विस्तृत कार्यक्रम की आयोजना और संचालन २४ सितम्बर से २४ अक्टुबर १९८२ तक किया गया । इस योजनाबद्ध सामाजिक कार्रवाई का नतीजा यह हुआ कि आज पूरे देश मे लगभग समूचा बहुजन समाज चमचा युग के खिलाप जागरुक है और उठ खडा हुआ है । चमचा युग के चुनौती से निपटने मे बहुत मदद मिला । चमचो को पहचान बहुच असानी से होने लगा ।
३) जन संवाद : साहब २५ दिसम्बर १९८२ में दिल्ली मे जन संसद शुरु किया । यह सोचा जाता था कि संसद में बहुजन को पर्याप्त प्रतिनिधि नही है और जो कुछ भी प्रतिनिधित्व है वह चमचो के रुप में है जिनसे उनके पूर्ण और निष्ठा भरे प्रतिनिधित्व की उपेक्षा नही की जा सकती । दिल्ली से यह पुरे देश मे जा—जाकर बहुजन समाज की समस्याओं पर चर्चा और बहस किया । इस तरह की सामाजिक कार्रवाई से उन ज्वलंत मुद्दो पर बहस किया जिन पर राष्ट्रीय संसद में बहस नही होती थी ।
४) दो पैरो और दो पहियों का कमाल ः जहां तक संसाधनो का सवाल है, तो बहुजन समाज सत्तारुढ जातियो से प्रतियागिता नही कर सकता । अपना अधिकार लेने के लिए इसे न केवल प्रतियोगिता मे आना होगा, बल्कि सत्तारुढ जातियो को सफलतापूर्वक हाराना भी होगा । संसाधनो कि जरुरत होगी । बहुजन समाज को अपने लघु और अल्प संसाधनो का बडे स्तर पर उपयोग किया । लगभग १०० साईकिल सवार १५ मार्च १९८३ को दिल्ली से रवाना होआ और ४० दिनो मे वे दिल्ली के आस पास ७ राज्यो में बहुजन चिंतन का प्रचार किया और इस विच ४२०० किमी दूरी तय किया । लोगो को उठाया । लोगो को जगाया । लोगो से प्रत्यक्ष रुपसे जुडा । समाजिक क्रान्ति का मिसाल कायम किया ।
(रजक अम्बेडकरी तथा बहुजन अध्यता है)
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