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Showing posts from May, 2018

बहुजन प्यारे! बौद्ध बनो तुम, खत्म करो नादानी…

बहुजन प्यारे! बौद्ध बनो तुम, खत्म करो नादानी… दलितता को छोड़ दो, है ये युगों-युगों की ग़ुलामी! दलितता है कमजोरी और लाचारी की पहचान ‘दलित’ कहकर खुद का तुम न करना अब अपमान बौद्ध-बहुजन अपनी बात है दलितता है बेगानी… दलितता को छो ड़दो, है ये युगों-युगों की ग़ुलामी! जाती-धरम के अंधकार में भटक रहा समाज था सारा मैत्री की ये ज्योत जलाकर किया बुद्ध ने जग उजियारा शील-समाधि-प्रज्ञा की वैसी फिर क्रांति है लानी… दलितता को छोड़ दो, है ये युगों-युगों की ग़ुलामी! समता और मानवता के रक्षक जो बने वो बौद्ध ही थे तेरे मेरे सब बहुजन के पूर्वज सारे बौद्ध ही थे बात है सच्ची सुन प्यारे इतिहास ने भी यह मानी… दलितता को छोड़ दो, है ये युगों-युगों की ग़ुलामी! कबिरा फुले भीमराव की सुनना सदा आत्म-सम्मान से रहना कांशीराम भी कहते― खुद को बहुजन-बौद्ध ही कहना ‘बौधकारो’ को है अब तो सम्मान की बात बतानी… दलितता को छोड़ दो, है ये युगों-युगों की ग़ुलामी! बहुजन प्यारे! बौद्ध बनो तुम, खत्म करो नादानी… दलितता को छोड़ दो, है ये युगों-युगों की ग़ुलामी! है ये… युगों-युगों की ग़ुलामी! Written by – Vruttant Man

रामायण सर्किट र राम–राज्य

सोमबार, ०७ जेठ २०७५, ०९ : ११  |   राजकिशोर रजक रामायण सर्किटभित्र लुकेको राम–राज्यको राजनीति बुझ्न वर्चश्वको सिद्धान्तलाई बुझ्न जरुरी छ । वर्चश्व (हेजीमोनी) के हो ? कालिन्स समाजशास्त्रीय शब्दकोशअनुसार हेजीमोनीको अर्थ हो— एउटा वर्गद्वारा अर्को वर्गमाथि वैचारिक÷सांस्कृतिक प्रभुत्व स्थापित गर्नु । यस्तो प्रभुत्व सामाजिक संस्था तथा सांस्कृतिक संरचनामा निहित तŒवबाट बनावटी सहमति वा सर्वसम्मतिद्वारा स्थापित हुन्छ । हेजीमोनी सिद्धान्तको प्रतिपादन इटालीका चिन्तक अन्तोनियो ग्राम्सीले गरेका थिए । ग्राम्सीले पँुजीपतिले राज्यसत्ताको प्रयोगबाट शोषित÷शासित समुदायलाई दमन गर्ने सन्दर्भमा परिभाषित गरेका थिए । उनको मतअनुसार शोषण, दमन तथा वर्चश्व केवल राजनीतिक मात्र नभएर सांस्कृतिक तथा सामाजिक अभ्यासबाट पनि हुन्छ । पुँजीवादी समाजका प्रमुख संस्थाहरू ः रोमन क्याथोलिक चर्च, न्यायपालिका, शिक्षा व्यवस्था, प्रचार माध्यमबाट यस्तो अभ्यास गरिन्छ । ती संस्थाका विचार र अभ्यासले आम मानिसलाई प्रभावित पार्छन्, आफ्ना विश्वास स्वीकार गर्न प्रोत्साहित गर्छन् । त्यसको प्रत्यक्ष फाइदा शासक वर्गलाई हुन्छ । किनभने त्यसले

अपनी हार का कारण मैं नही हुं, इसमें हमारी पूरी कौम जिम्मेदार है ।

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राजकिशोर रजक “शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो” का नारा बाबासाहेव डॉ भिमराव अम्बेडकर ने दिया था । डॉ अम्बेडकर के इस विचार को लोग बहुत प्रचारित करते है । पढा लिखा वर्ग इस विचारको रट लिया है पर उनहें इस वात की समझ नहीं है कि उन्हें किसे संगठित करना है । आज हम सव देखते है कि अपनी जाति को ही संगठित करने में अपना बहुमूल्य समय गंवा देता है । बहुजन समाज अपनी जाति को संगठित कर गर्व महशुस करता है । कोई पासमान समाज, कोइ यादव समाज तो कोइ मण्डल समाज । बाबासाहेव की सोंच थी कि जो असंगठित लोग है, उन्हे संगठित करो । वहुजन असंगठित है । जातब्यवस्था ने बहुजनको टुकडा टुकडा में विभाजन कर दिया है । क्रमिक श्रेणिकरण कर दिया है । मुलनिवासि बहुजन समाजको शिक्षित कर ब्यवस्था परिवर्तन के लिए उनको संगठित करने का विचार दिया था । संगठित बहुजन समाज ब्यवस्था परिवर्तन के लिए संघर्ष करेगें । १९५४ में एक समारोह में बाबा साहेब ने लोगों का संबोधित करते कहा था, “एक मनुष्य का एक जीवन होता है । इस जीवन में मैं आप लोगों के लिए जितना कर सकता था, उससे भी कहीं ज्यादा मैंने किया है । लेकिन कुछ बातों में मैं सफल रहा हुं और