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पे बैक टू द सोसाइटी दिबस

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साहब का बचपन पंजाब राज्य के खवासपुर गांव में साहब कांशीराम का जन्म एक समान्य किसान परिवार में हुवा था । सतलुज नदी के किनारे दोआब क्षेत्र में कटली गांव के नजदीक पिता हरिसिंह जी खेती बाडी करते थे । विद्यालय शिक्षा के दौरान साहब कांशीराम अपने पिता को खेती बाडी मे सहयोग करते थे । स्कुल से आने के बाद फिर से अपने खेतों में चले जाते थे वहां आम के बाग की रखवाली करते थे । आम के पेड के निचे बैठकर पढाई करते थे । प्रकृति से जुडाब के कारण गर्मियो में पढाइ करते करते सो जाते थे । साहेब कि शिक्षा चौथी कक्षा तक मलकपुर के सरकारी स्कुल में हुई, पांचवी से आठवी तक की शिक्षा इस्लामिया स्कुल रोपड में हुई, नौवीं और दसवी की शिक्षा डीएवी पब्लिक स्कुल में तथा महाविद्यालय शिक्षा बी.एस.सी. गवर्नमेंट कलेज रोपड में पूरी हुई । अपने समुदाय के पहला व्यक्ति था जिन्होने बी.एस.सी. तक की पढाई पूरी की । मै पटबारी नहीं प्रधान मंत्री बनुंगा साहब बी.एस.सी. की पढाई पूरी करने के वाद खेत के काम में हाथ नही बंटाने लगा । एक पडोसी जमिन्दार साहब के पिता हरिसिँह जी को टोकते थे कि तुम्हारा बडा बेटा कांशीरा हट्टा–कट्टा ह

गांधी का विशैली विचार

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जाति प्रथा पर गांधी जी के विचार, १९२१–२२ के गुजराती पत्र ‘नवजीवन’ में उन्ही के द्धारा पुनर्मुद्रित भाग–दो के संपादकीय लेख गुजराती में प्रकट होते है – उनके विचारो का अनुवाद उन्ही के शब्दो में नीचे दिया गया है । श्री गांधी कहते है – (१) मुझे विश्वास है कि हिंदु समाज आज तक इसी कारण जीवित रह सका है कि वह वर्ण–व्यवस्था पर आधारित है । (२) स्वराज्य के बीज वर्ण व्यवस्था में उपलब्ध है । विभिन्न जातियां सैनिक डिभिजन की भांती इसके विभिनन वर्ण हैँ । प्रत्येक वर्ण सैनिक डिभिजन की भांती पूरे समाज क हित में काम करता है । (३) जो समाज वर्ण–व्यवस्था का सृजन कर कसता है, यसे निश्चित रुप से कहा जा सकता है कि उनमें अनोखी संगठन क्षमता है । (४) वर्ण–व्यवस्था में प्राथमिक शिक्षा के प्रसार के लिए सदावहार साधन मौजूद है । प्रत्येक जाति अपने बच्चो को अपनी जाति में शिक्षित करने की जिम्मेदारी लेती है । जातियो का राजनीतिक उदेश्य है । कोइ भी जाति अपनी प्रतिनिधि सभा में अपने प्रतिनिधि चुन कर भेज सकती है । जाति अपने पारम्परिक जातीय झगडो को तय कर सकती है । प्रत्येक जाति को सैनिक टुकडी का दर्जा देकर सुरषा के लिए ज