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बाबासाहब ने कार्ल मार्क्स का मार्ग क्यों नहीं अपनाया ?

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मार्क्सवाद अथवा कम्युनिस्म का लक्ष्य केवल आर्थिक समानता है।  मैं आर्थिक उन्नति का विरोधी नहीं हु। मेरा मत है की मनुष्य-मात्र की आर्थिक उन्नति होनी चाहिए। निर्धनता के कष्टों को मैं जानता हु। अपने पिता के निर्धनता के कारन मैंने जितना कष्ट सहन किया है, उतना बहुत कम लोगों ने सहा होगा इसलिए गरीबों का जीवन जितना कष्टमय होता है, इसे मैं भलीभांति जानता हु। किन्तु मेरा विश्वास है की आर्थिक उन्नति के साथ मानसिक उन्नति भी होनी चाहिए, जिसके लिए धर्म की आवश्यकता है।  कार्लमार्क्स के सिद्धांत में धर्म का कोई महत्व नहीं है। उनका धर्म केवल यह है कि उन्हें प्रातः काल मक्खन लगे टोस्ट और दोपहर स्वादिष्ट भोजन, सोने के लिए बढिया बिस्तर और देखने के लिए सिनेमा मिले। मैं कम्युनिस्टों के निरेभौतिक और जड़ तत्वज्ञान का हामी नहीं हूं। इस संबंध में मेरे अपने विचार हैं। मेरे अपने विचार से पशुओं और मनुष्यों में अंतर है। पशुओं को चारे के सिवाय किसी और चीज की जरूरत नहीं होती किंतु  मानव शरीर के साथ मन भी है। मन का विकास जरूरी है। मन को पवित्र और सुसंस्कृत रखने के लिए धर्म की आवश्यकता है। जिस प्रकार शरीर का निरोग होना