अपनी हार का कारण मैं नही हुं, इसमें हमारी पूरी कौम जिम्मेदार है ।
राजकिशोर रजक
“शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो” का नारा बाबासाहेव डॉ भिमराव अम्बेडकर ने दिया था । डॉ अम्बेडकर के इस विचार को लोग बहुत प्रचारित करते है । पढा लिखा वर्ग इस विचारको रट लिया है पर उनहें इस वात की समझ नहीं है कि उन्हें किसे संगठित करना है । आज हम सव देखते है कि अपनी जाति को ही संगठित करने में अपना बहुमूल्य समय गंवा देता है । बहुजन समाज अपनी जाति को संगठित कर गर्व महशुस करता है । कोई पासमान समाज, कोइ यादव समाज तो कोइ मण्डल समाज । बाबासाहेव की सोंच थी कि जो असंगठित लोग है, उन्हे संगठित करो । वहुजन असंगठित है । जातब्यवस्था ने बहुजनको टुकडा टुकडा में विभाजन कर दिया है । क्रमिक श्रेणिकरण कर दिया है । मुलनिवासि बहुजन समाजको शिक्षित कर ब्यवस्था परिवर्तन के लिए उनको संगठित करने का विचार दिया था । संगठित बहुजन समाज ब्यवस्था परिवर्तन के लिए संघर्ष करेगें ।
१९५४ में एक समारोह में बाबा साहेब ने लोगों का संबोधित करते कहा था, “एक मनुष्य का एक जीवन होता है । इस जीवन में मैं आप लोगों के लिए जितना कर सकता था, उससे भी कहीं ज्यादा मैंने किया है । लेकिन कुछ बातों में मैं सफल रहा हुं और कुछ बातों में अ–सफल । समाज तभी संगठित होगा, जब समाज में संगठित होने की भावना का विकास होगा । इस भावना का बडे पैमाने पर मैं विकास नहीं कर सका । यह मेरा कार्य अधुरा है । इसलिए आप लोगों से मेरा अनुरोध है की मेरी जय–जयकार करने की बजाय मेरे अधुरे कार्य को पूरा करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दो ।”
जिसे हम मधेशी बहुजन समाज कहते है, वह सयौँ जातियों में बंटा हुआ है । वह अपने आप नहीं बंटा है, उसे आर्य ब्राद्मण ने एक सामाजिक ब्यवस्था के माध्यम से बांटा है । मधेशी बहुजन समाज में आपस में भाईचारा नहीं है । क्रमिक गैर–गैरबराबरी के कारण वह आपस में ही एक–दुसरे से द्धेस भाव रखता है और लडता–झगडता रहता है । उसका चरित्र बडा विचित्र है उसके चरित्र को कहानी के माध्यम से सही तरीके से समक्षा जा सकता है ।
सामाजिक परिवर्त के अभियन्ता दायराम अपने पुस्तक बहुजन आन्दोल के सम्पूर्ण, समर्पित नेतृत्व डी.के.खपार्डे लिखता है । एक गांव में गधा और कुत्ता दोनों बिरादरियों के लोगो ने दौड की प्रतिस्पर्धा तय की । गधे की बिरादरी वाले प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाले गधे को खुब हरी–हरी घासें खिलाई तथा कुत्ते की बिरादरी वाले भी अपने प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाले कुत्ते को खुब चिकन और मटन खिलाया । दौड के लिए सीटी बजी कुत्ता और गधा दोनों पूरी तकत लगाकर दौडे । कुत्ता आगे निकल गया किंतु थोडी दूर पर ही चार कुत्ते उससे रास्ते में ही भिड गए । इतने में गधा आगे निकल गया । किसी तरह कुत्ता उनसे छुडाकर पुनः तेज दौड लगाई और गधा को पीछे कर दिया । कुत्ता आगे बढत बानए हुए था कि रास्ते में पुनः चार कुत्ते उससे आ भिडे । वह उनसे किसी तरह पिंड छुडाता की गधा गंतव्य स्थल पर पहंच गया ।
गधे की बिरादरी के लोग पूmल मलाएं लेकर गधे का स्वागत करने के लिए दौडे तो कुत्ते के बिरादरी वाले निराश होकर अपने पराजित कुत्ते को कटी–जली बातें सुनाने लगे । प्रतिस्पर्धा में पराजित कुत्ते ने अपने बिरादरी बालो को जवाब दिया कि इसमें अपनी हार का कारण मै नही हुं, इसमे हमारी पूरी कौम जिम्मेदार है । इसलिए कि इसका कौमीय चरित्र ही एसा है, जो आपस में अपनी ही बिरादरी से लडता है । फिर प्रतिस्पर्धा में कैसे जीत सकता है ?
मधेशि बहुजन समाज परिवर्तन का अर्थ हमारे समाज की दलित, पिछडा वर्ग, जनजाति, मुस्लिम, कनभरर्टेड अल्पसंख्यक जातिया सैकडो टुकडा मे बंटकर आपस मे ही लडते है । उन सैकडो जातियो की आपसी लडाइ खत्म करके एक समाज बनान है । उसके लिए मुलनिवासि मधेशि बहुजन समाजको निर्माण करना होगा । समाजको एक बनाना है तो समाज का एक विचारधारा वनाना होगा । उस विचारधारा के जडिए एक समाज को निर्माण करना होगा । उस विचारधाराको हम अम्बेडकर विचारधारा से जोड सकते है । जब विचार परिवर्तन होगा तो समाज परिवर्तन होगा । जब सामाजिक परिवर्तन होगा तो राजनीतिक ब्यवस्था मे भी परिवर्तन होगा । जब तक बहुजन समाज नहि बनता तब तक हम बहुसँख्यक नहि बन सकते । जब तक बहुसँख्यक नही बन सकते तब तक राजनीति मे परिवर्तन नही ला सकते । जब तक राजनीतिक परिवर्तन नही होगा तब तक ब्यवस्था परिवर्तन नहीं होगी ।
जहाँ लोकतन्त्र है, वहाँ शासन सत्ता लोकतान्त्रिक मूल्यों से चलतीं है । वहाँ शासक वही होता है, जो बहुजन होता है । अल्पजन कभी शासक नही बन सकता । विश्व में भारत नेपाल एक एसा देश है अल्पजन शासक है और बहुजन शासित है । यह सच्चाई मधेश के सन्दर्भ में भी लागु होता है । शासक बनने के लिए बहुसंख्या होना जरुरी है । बहुसंख्या के लिए मधेशि बहुजन समाज निर्माण करणा होगा ।
जब तक जमिनी स्तर पर बहुजन समाज निर्माण नहीं हो ता तब तक हुकमरान नही बन सकते । दलित चेतना, पिछडा वर्ग का चेतना, थारु चेतना, यादव चेतना खण्डीत चेतना है । मधेशि बहुजन समाज जातब्यवस्था रुपी समाजिक ब्यवस्था के कारण असंगठित है । मधेश में मुलनिवासि बहुजन का मतलव मधेशि दलित, पिछडा वर्ग, मधेशि जनजाति, मुस्लिम, बौद्ध, कविरपन्थि है । बहुजनका संख्या ९० प्रतिशत से ज्यादा है । संख्या में अधिक होना लोकतन्त्र में बडी बात है । बालिक मताअधिकार का अर्थ बहुजन शासन करे पर दुर्भाग्य आज हम अल्पजन से शासित है ।
@Raj62M
(रजक दलित बहुजन अभियन्ता है । उपर व्यक्त विचार नीजि विचार है)
“शिक्षित बनो, संगठित हो और संघर्ष करो” का नारा बाबासाहेव डॉ भिमराव अम्बेडकर ने दिया था । डॉ अम्बेडकर के इस विचार को लोग बहुत प्रचारित करते है । पढा लिखा वर्ग इस विचारको रट लिया है पर उनहें इस वात की समझ नहीं है कि उन्हें किसे संगठित करना है । आज हम सव देखते है कि अपनी जाति को ही संगठित करने में अपना बहुमूल्य समय गंवा देता है । बहुजन समाज अपनी जाति को संगठित कर गर्व महशुस करता है । कोई पासमान समाज, कोइ यादव समाज तो कोइ मण्डल समाज । बाबासाहेव की सोंच थी कि जो असंगठित लोग है, उन्हे संगठित करो । वहुजन असंगठित है । जातब्यवस्था ने बहुजनको टुकडा टुकडा में विभाजन कर दिया है । क्रमिक श्रेणिकरण कर दिया है । मुलनिवासि बहुजन समाजको शिक्षित कर ब्यवस्था परिवर्तन के लिए उनको संगठित करने का विचार दिया था । संगठित बहुजन समाज ब्यवस्था परिवर्तन के लिए संघर्ष करेगें ।
१९५४ में एक समारोह में बाबा साहेब ने लोगों का संबोधित करते कहा था, “एक मनुष्य का एक जीवन होता है । इस जीवन में मैं आप लोगों के लिए जितना कर सकता था, उससे भी कहीं ज्यादा मैंने किया है । लेकिन कुछ बातों में मैं सफल रहा हुं और कुछ बातों में अ–सफल । समाज तभी संगठित होगा, जब समाज में संगठित होने की भावना का विकास होगा । इस भावना का बडे पैमाने पर मैं विकास नहीं कर सका । यह मेरा कार्य अधुरा है । इसलिए आप लोगों से मेरा अनुरोध है की मेरी जय–जयकार करने की बजाय मेरे अधुरे कार्य को पूरा करने के लिए अपनी जान की बाजी लगा दो ।”
जिसे हम मधेशी बहुजन समाज कहते है, वह सयौँ जातियों में बंटा हुआ है । वह अपने आप नहीं बंटा है, उसे आर्य ब्राद्मण ने एक सामाजिक ब्यवस्था के माध्यम से बांटा है । मधेशी बहुजन समाज में आपस में भाईचारा नहीं है । क्रमिक गैर–गैरबराबरी के कारण वह आपस में ही एक–दुसरे से द्धेस भाव रखता है और लडता–झगडता रहता है । उसका चरित्र बडा विचित्र है उसके चरित्र को कहानी के माध्यम से सही तरीके से समक्षा जा सकता है ।
सामाजिक परिवर्त के अभियन्ता दायराम अपने पुस्तक बहुजन आन्दोल के सम्पूर्ण, समर्पित नेतृत्व डी.के.खपार्डे लिखता है । एक गांव में गधा और कुत्ता दोनों बिरादरियों के लोगो ने दौड की प्रतिस्पर्धा तय की । गधे की बिरादरी वाले प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाले गधे को खुब हरी–हरी घासें खिलाई तथा कुत्ते की बिरादरी वाले भी अपने प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाले कुत्ते को खुब चिकन और मटन खिलाया । दौड के लिए सीटी बजी कुत्ता और गधा दोनों पूरी तकत लगाकर दौडे । कुत्ता आगे निकल गया किंतु थोडी दूर पर ही चार कुत्ते उससे रास्ते में ही भिड गए । इतने में गधा आगे निकल गया । किसी तरह कुत्ता उनसे छुडाकर पुनः तेज दौड लगाई और गधा को पीछे कर दिया । कुत्ता आगे बढत बानए हुए था कि रास्ते में पुनः चार कुत्ते उससे आ भिडे । वह उनसे किसी तरह पिंड छुडाता की गधा गंतव्य स्थल पर पहंच गया ।
गधे की बिरादरी के लोग पूmल मलाएं लेकर गधे का स्वागत करने के लिए दौडे तो कुत्ते के बिरादरी वाले निराश होकर अपने पराजित कुत्ते को कटी–जली बातें सुनाने लगे । प्रतिस्पर्धा में पराजित कुत्ते ने अपने बिरादरी बालो को जवाब दिया कि इसमें अपनी हार का कारण मै नही हुं, इसमे हमारी पूरी कौम जिम्मेदार है । इसलिए कि इसका कौमीय चरित्र ही एसा है, जो आपस में अपनी ही बिरादरी से लडता है । फिर प्रतिस्पर्धा में कैसे जीत सकता है ?
मधेशि बहुजन समाज परिवर्तन का अर्थ हमारे समाज की दलित, पिछडा वर्ग, जनजाति, मुस्लिम, कनभरर्टेड अल्पसंख्यक जातिया सैकडो टुकडा मे बंटकर आपस मे ही लडते है । उन सैकडो जातियो की आपसी लडाइ खत्म करके एक समाज बनान है । उसके लिए मुलनिवासि मधेशि बहुजन समाजको निर्माण करना होगा । समाजको एक बनाना है तो समाज का एक विचारधारा वनाना होगा । उस विचारधारा के जडिए एक समाज को निर्माण करना होगा । उस विचारधाराको हम अम्बेडकर विचारधारा से जोड सकते है । जब विचार परिवर्तन होगा तो समाज परिवर्तन होगा । जब सामाजिक परिवर्तन होगा तो राजनीतिक ब्यवस्था मे भी परिवर्तन होगा । जब तक बहुजन समाज नहि बनता तब तक हम बहुसँख्यक नहि बन सकते । जब तक बहुसँख्यक नही बन सकते तब तक राजनीति मे परिवर्तन नही ला सकते । जब तक राजनीतिक परिवर्तन नही होगा तब तक ब्यवस्था परिवर्तन नहीं होगी ।
जहाँ लोकतन्त्र है, वहाँ शासन सत्ता लोकतान्त्रिक मूल्यों से चलतीं है । वहाँ शासक वही होता है, जो बहुजन होता है । अल्पजन कभी शासक नही बन सकता । विश्व में भारत नेपाल एक एसा देश है अल्पजन शासक है और बहुजन शासित है । यह सच्चाई मधेश के सन्दर्भ में भी लागु होता है । शासक बनने के लिए बहुसंख्या होना जरुरी है । बहुसंख्या के लिए मधेशि बहुजन समाज निर्माण करणा होगा ।
जब तक जमिनी स्तर पर बहुजन समाज निर्माण नहीं हो ता तब तक हुकमरान नही बन सकते । दलित चेतना, पिछडा वर्ग का चेतना, थारु चेतना, यादव चेतना खण्डीत चेतना है । मधेशि बहुजन समाज जातब्यवस्था रुपी समाजिक ब्यवस्था के कारण असंगठित है । मधेश में मुलनिवासि बहुजन का मतलव मधेशि दलित, पिछडा वर्ग, मधेशि जनजाति, मुस्लिम, बौद्ध, कविरपन्थि है । बहुजनका संख्या ९० प्रतिशत से ज्यादा है । संख्या में अधिक होना लोकतन्त्र में बडी बात है । बालिक मताअधिकार का अर्थ बहुजन शासन करे पर दुर्भाग्य आज हम अल्पजन से शासित है ।
@Raj62M
(रजक दलित बहुजन अभियन्ता है । उपर व्यक्त विचार नीजि विचार है)
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