बहुजन प्यारे! बौद्ध बनो तुम, खत्म करो नादानी…
बहुजन प्यारे!
बौद्ध बनो तुम,
खत्म करो नादानी…
बौद्ध बनो तुम,
खत्म करो नादानी…
दलितता को छोड़ दो, है ये
युगों-युगों की ग़ुलामी!
युगों-युगों की ग़ुलामी!
दलितता है कमजोरी और
लाचारी की पहचान
‘दलित’ कहकर खुद का तुम
न करना अब अपमान
लाचारी की पहचान
‘दलित’ कहकर खुद का तुम
न करना अब अपमान
बौद्ध-बहुजन अपनी बात है
दलितता है बेगानी…
दलितता है बेगानी…
दलितता को छो ड़दो, है ये
युगों-युगों की ग़ुलामी!
युगों-युगों की ग़ुलामी!
जाती-धरम के अंधकार में
भटक रहा समाज था सारा
मैत्री की ये ज्योत जलाकर
किया बुद्ध ने जग उजियारा
भटक रहा समाज था सारा
मैत्री की ये ज्योत जलाकर
किया बुद्ध ने जग उजियारा
शील-समाधि-प्रज्ञा की वैसी
फिर क्रांति है लानी…
फिर क्रांति है लानी…
दलितता को छोड़ दो, है ये
युगों-युगों की ग़ुलामी!
युगों-युगों की ग़ुलामी!
समता और मानवता के
रक्षक जो बने वो बौद्ध ही थे
तेरे मेरे सब बहुजन के
पूर्वज सारे बौद्ध ही थे
रक्षक जो बने वो बौद्ध ही थे
तेरे मेरे सब बहुजन के
पूर्वज सारे बौद्ध ही थे
बात है सच्ची सुन प्यारे
इतिहास ने भी यह मानी…
इतिहास ने भी यह मानी…
दलितता को छोड़ दो, है ये
युगों-युगों की ग़ुलामी!
युगों-युगों की ग़ुलामी!
कबिरा फुले भीमराव की सुनना
सदा आत्म-सम्मान से रहना
कांशीराम भी कहते―
खुद को बहुजन-बौद्ध ही कहना
सदा आत्म-सम्मान से रहना
कांशीराम भी कहते―
खुद को बहुजन-बौद्ध ही कहना
‘बौधकारो’ को है अब तो
सम्मान की बात बतानी…
सम्मान की बात बतानी…
दलितता को छोड़ दो, है ये
युगों-युगों की ग़ुलामी!
युगों-युगों की ग़ुलामी!
बहुजन प्यारे!
बौद्ध बनो तुम,
खत्म करो नादानी…
दलितता को छोड़ दो, है ये
युगों-युगों की ग़ुलामी!
बौद्ध बनो तुम,
खत्म करो नादानी…
दलितता को छोड़ दो, है ये
युगों-युगों की ग़ुलामी!
है ये…
युगों-युगों की ग़ुलामी!
युगों-युगों की ग़ुलामी!
Written by –
Vruttant Manwatkar
PhD Scholar, JNU
PhD Scholar, JNU
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